मध्यप्रदेश में एरोपोनिक तकनीक का होगा इस्तेमाल, अब जमीन नहीं बल्कि हवा में उगेगा आलू, इस जिले में खुलेगी लैब

देश में सबसे ज्यादा आलू उत्पादन करने वाले प्रदेशों में मध्य प्रदेश छठ में नंबर पर है इसी बीच अब किसानों के लिए एक और खुशखबरी सामने आई है जिससे किसान अब उच्चतम क्वालिटी के साथ ही बीमारी रहित आलू का उत्पादन कर सकते हैं। इसके लिए ग्वालियर जिले में अत्याधुनिक लैब खोला जायेगा। जिसमें एरोपोनिक तकनीक से आलू का उत्पादन किया जाएगा ।इसके लिए मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने एग्री नोवेट इंडिया लिमिटेड से करार किया है।

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सरकार ने किया यह करार

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर में अब आधुनिक लैब खोला जाएगा जिसमें एरोपोनिक तकनीक से आलू का उत्पादन किया जाएगा। इसके लिए शिवराज सरकार के उद्यानिकी विभाग और एग्रिनोवेट इंडिया लिमिटेड के बीच करार हो गया है। इस कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मध्य प्रदेश प्रधानमंत्री भारत सिंह कुशवाह दिल्ली के कृषि भवन में एग्रीमेंट होने के दौरान मौजूद रहेंगे। वहीं जल्द ही इसका काम लैब में किया जाएगा जिसके लिए अधिकारी ग्वालियर का दौरा करेंगे।

किसानों को मिलेगा फायदा

बता दें कि इस तकनीक से आलू का उत्पादन करने से बीमारियां भी नहीं होगी। वहीं पौधों को किसान बिना मिट्टी के भी फसल में उपयोग कर सकते हैं। इस तकनीक से फसल का उत्पादन भी 10 से 12% तक बढ़ जाता है। इस मामले में केंद्रीय मंत्री भारत सिंह कुशवाहा ने जानकारी देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश आलू के क्षेत्र में बड़ा स्थान रहा है। इसकी अनुरूप यहां उत्पादन नहीं हो पा रहा है। ग्वालियर में लैब हो जाने से किसानों को बड़ी मदद मिल जाएगी।

जानिए क्या होती है एरोपोनिक पद्धति

आपकी जानकारी के लिए बता दें की एयरोपोनिक्स एक ऐसी पद्धति है जिसमें बिना मिट्टी के पौधों को उगाया जाता है। इन पौधों को बड़े-बड़े बॉक्स में लटका दिया जाता है और प्रत्येक बॉक्स में ग्रोथ के लिए पोषक तत्व और पानी डाला जाता है जिससे पौधों की जड़ों में नमी बनी रहती है और कुछ समय बाद फसल का उत्पादन होने लग जाता है। पाली हाउस में भी एयरोपोनिक्स पद्धति से फसल का उत्पादन किया जाता है जिसमें आलू ऊपर होता है और उसकी जड़ नीचे रहती है, लेकिन आम आलू की फसल को देखें तो आलू जमीन के नीचे होता है, लेकिन इस पद्धति के द्वारा आलू अलग तरीके से उगाया जाता है। पौधे के नीचे पोषक तत्व दिए जाते हैं और ऊपर से दूध जिससे पौधे का विकास होता है यहां पद्धति बहुत ही कारगर साबित होगी।

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