समाज की सोच को दरकिनार कर आगे निकली मध्य प्रदेश की ये बेटियां, खुद का गैराज चलाकर कर रही कमाई

Khandwa Khalwa Tribal Girls: जमाना चाहे 21वीं सदी में पहुंच गया हो लेकिन आज भी कहीं ना कहीं लोगों की सोच पुरानी ही देखने को मिलती है। आज भी कई मौकों पर लड़कियों को काम करने से रोका जाता है और उन्हें यहां तक कह दिया जाता है कि यह काम तुम्हारे लायक नहीं है तुम क्या लड़का हो। लेकिन तेजी से बदल रहे तो और क्या अनुसार लड़कियां भी बदल रही है। बता दें कि आज लड़कियां चूल्हे चौके में काम करने तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने भी काफी जिम्मेदारियों को संभाला है।

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Khandwa Khalwa Tribal Girls 1

आज बड़ी-बड़ी पोस्ट पर बेटियां नजर आती है। इतना ही नहीं आज ऐसा कोई काम नहीं जो बेटियां नहीं कर सकती हो आज बेटियों ने आगे आकर अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया है। आज हम आपको मध्यप्रदेश की दो ऐसी ही बेटियों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने अपने हौसलों से दूसरी बेटियों को साहस देने का काम किया है और लोगों के लिए मिसाल बनी हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं खंडवा जिले के खालवा ब्लॉक से आने वाली दो आदिवासी लड़कियों की।

लोग बनाते थे मजाक

बता दें कि यह दोनों लड़कियां आज अपने दम पर आत्मनिर्भर बन चुकी है और मोबाइल सुधारने के साथ ही खुद का गैराज भी चलाती है। इन बेटियों ने समाज की दूसरी बेटियों को भी साहस और हौसला दिया है यह उन बेटियों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है जो कि लोगों की सोच की वजह से आगे नहीं बढ़ पाती है। यह दोनों बेटियां कोरकू आदिवासी समुदाय से आती है। खंडवा के जिस क्षेत्र से मंटू और गायत्री आती है यह काफी पिछड़ा हुआ हैं यहां पर आदिवासी बस्ती ज्यादा देखने को मिलती है।

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हालांकि इसके बावजूद भी गायत्री और मंटू दोनों पढ़ी लिखी है और काफी दिमाग भी रखती है। आज दोनों बेटियां अपने दम पर घर का खर्चा चलाती है। इतना ही नहीं इसके अलावा भी दोनों को काफी सारे काम आते हैं दोनों फ्री समय में मोबाइल तक सुधार लेती है लोगों का मेकअप भी कर लेती है जिससे दोनों की आमदनी 500 से 1000 रुपए रोजाना की हो जाती हैं। अपने जर्नी के बारे में बताते हुए गायत्री ने कहा कि उन्होंने कई बार अपने माता-पिता के साथ पलायन भी किया है और लोगों के यहां पर दहाड़ी की मजदूरी भी की है।

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संघर्ष भरी है कहानी

लेकिन एक संस्था से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी लगभग बदल चुकी है उन्होंने अपनी समस्याओं को संस्था की महिलाओं के साथ साझा किया और उन्होंने इन बेटियों को काफी सहारा दिया यही कारण है कि आज यह दोनों बेटियां अपने दम पर आत्मनिर्भर बन चुकी है और अपना खुद का काम करती है। गायत्री और मंटू अब पहले की तरह धार की मजदूरी नहीं करती बल्कि गाड़ी रिपेयरिंग और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हुए अच्छी आमदनी कमा लेती है।

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गौरतलब है कि संस्था द्वारा गांव से जुड़ी और भी कई लड़कियों का ब्यूटी पार्लर से लेकर गाड़ी रिपेयरिंग करना और भी कई कोर्स करवाए गए जिसके दम पर आज गांव की और भी कई बेटियां खुद का काम कर रही है। अब उन्हें मजदूरी करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने आगे बताया कि लोगों के ताने भी उन्हें खूब सुनने को मिले। क्योंकि उनका काम ऐसा है जो कि ज्यादातर लड़के करते हैं लेकिन उन्होंने इसके बावजूद भी किसी की ना सुनी और आज अपने दम पर अपना खुद का व्यापार कर रही है।