इंदौर का फेरी लगाने वाले को लाफ्टर शो में मिली जगह, राजबाड़ा पर बाप-दादा के जमाने से है धंधा, पिता मुंबई में तो बेटा लगा रहा फेरी

अगर इंसान में काबिलियत और किसी काम को करने का जुनून हो तो रास्ते में कितनी भी मुसीबत आ जाएं पीछे नहीं हटते हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी और देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के हृदय स्थल राजवाड़ा पर फेरी लगाकर सामान बेचने वाला शख्स अब टीवी शो इंडियाज लाफ्टर चैंपियन में पहुंच गया है। अब उनकी तारीफ हो रही है। दरअसल वहां कवि और कॉमेडियन भी हैं। अब उनकी इस तरह की परफॉर्मेंस को देखकर जज शेखर सुमन और अर्चना पूरन सिंह ने काफी तारीफ की है। इतना ही नहीं अपने पिताजी के इस शो में जाने के बाद उनका बेटा उनकी जगह राजवाड़े पर फेरी लगाकर सामान बेच रहा है।

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जज शेखर सुमन और पूरण सिंह ने की तारीफ

दरअसल इंदौर में हर किसी के पास टैलेंट है, लेकिन अगर टैलेंट दिखाने का मौका मिल जाए तो फिर पीछे नहीं हटते है। ऐसे में अब इंदौर शहर के अख्तर हिंदुस्तानी को अब टीवी शो इंडियाज लाफ्टर में जगह मिली है। बताया जाता है कि वहां शौकिया तौर पर कवि और कॉमेडियन है। ऐसे में उनकी परफॉर्मेंस को देखकर जज शेखर सुमन और अर्चना पूरन काफी खुश हो गए और उन्होंने जमकर तारीफ की। इस दौरान उन्होंने कहा कि अब तक आप कॉमेडियन नहीं बल्कि एक तपस्वी हैं। हमें आपकी इस शो में बहुत अधिक जरूरत है।

राजवाड़े पर फेरी लगाते है अख्तर हिंदुस्तानी

बता दें कि अख्तर हिंदुस्तानी की उम्र 52 साल की है और वहां राजवाड़े इलाके में फेरी लगाकर 10 से 60 रुपये की कीमत के इमिटेशन ज्वेलरी भेजते हैं। उनके परिवार में 5 लोग हैं और इनकी कमाई से ही घर चलता है ।उनका कहना है कि उनके पिता और दादा भी यही काम करते थे ।वहीं उनके घर में 200 रुपये का बिजली बिल आता है और राशन कार्ड सरकार ने दिया है। इसलिए उन्हें कमाने की परवाह कभी नहीं रही है।

1984 से आज तक कर रहे कॉमेडी

वहीं मीडिया को जानकारी देते हुए अख्तर हिंदुस्तानी के बेटे ज़ैद हिंदुस्तानी ने बताया कि उनके पिता फेरी लगाते हैं तभी घर में खाना बनता है। मेरे पिता शुरू से ही मेहनती है उनके मन में चाहे कितनी भी उलझन रही हो कभी अपनी कविताओं से कभी जोक से हमें हंसाते रहते हैं ।ऐसे कई ईद निकल गई जब पापा ने पुराने कपड़े पहने और हमारे लिए ईद पर नए कपड़े लेकर आए हैं। बता दें कि 1970 में जन्मे अख्तर 1984 से लेकर और कॉमेडी कर रहे हैं। करीब 3000 मुशायरा कवि सम्मेलन में शिरकत कर चुके हैं, लेकिन उन्हें पहचान मिल रही है।

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