मध्यप्रदेश में इस जगह किया था प्रभु श्री राम ने पिता का श्राद्ध, जानिए इस स्थान का महत्व

देशभर में इस समय पितृपक्ष श्राद्ध का महीना चल रहा है और ऐसे में अपने पितरों को श्राद्ध और तर्पण किया जा रहा है। कहते हैं इस महीने में अपने पितरों का श्राद्ध करने से पितरों की पूजा से व्यक्ति की कुंडली में लगे कई दोष दूर हो जाते हैं और उन्हें उनके पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। हम मध्य प्रदेश के एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर भगवान श्री राम ने अपने पिता का श्राद्ध किया था । आइए देखते हैं यह खास खबर…

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इस जगह किया था प्रभु श्री ने पिता दशरथ का श्राद्ध

भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था और उनके वियोग में उनके पिता दशरथ का देवलोक गमन हो गया था। ऐसे में भगवान श्रीराम ने अपने पिता का श्राद्ध मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित दशरथ घाट पर किया था। यहां श्रद्धालुओं को पहुंचने के लिए प्रमुख मार्ग से लगभग 3 किलोमीटर बीहड़ जंगल और सड़क विहीन मार्ग का सफर करना पड़ता है। यह अमरकंटक से निकलने वाली दो प्रमुख नदियों सोनभद्र और जोहिला के संगम स्थल पर स्थित है। इसे दशरथ घाट के नाम से पहचाना जाता है।

दक्षिण दिशा में 2 नदियों का होता है संगम

उमरिया जिले में स्थित भगवान श्री राम वन गमन के एक प्रमुख स्थल जिसे दशरथ घाट के नाम से पहचाना जाता है। मानपुर नगर से शहडोल की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित ग्राम अकेला हारी में मुख्य मार्ग से करीबन 3 किलोमीटर दक्षिण दिशा में 2 नदियां सोहन एवं जोहिला के संगम स्थल पर यह स्थित है। मान्यता है कि भगवान श्री राम बन जाते समय इस स्थल पर अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध किया था और यही वजह है कि विंध्य में कल पर्वत श्रंखला की सबसे ऊंची चोटी अमरकंठ से निकलने वाली देश की दो प्रसिद्ध नदियों सोनभद्र जिला के संगम को आज भी दशरथ घाट के नाम से प्रसिद्ध है।

बसंत पंचमी पर लगता है यहां भव्य मेला

हर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन आसपास के रहवासी स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। बसंत पंचमी के अवसर पर यहां पर मेले का आयोजन भी होता है। उमरिया शहडोल समेत प्रदेश एवं देश के कई अन्य हिस्सों से श्रद्धालु यहां पर पहुंचते हैं। इसके खास विशेषता यह है कि भगवान कार्तिक का दुर्गा मंदिर भी यहां पर स्थापित है। इस इलाके का यह भगवान कार्तिकेय का इकलौता दुल्ला मंदिर है।

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रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम जब अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए 14 वर्ष के वनवास पर निकले तो एक लंबा सफर 12 वर्ष उन्होंने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ चित्रकूट में बिताया ।यहीं भगवान श्री राम के भाई भरत से पिता महाराजा दशरथ के निधन की खबर मिली थी। 14 वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद जब राम राम चित्रकूट से आगे बढ़े तो सतना जिले के कई स्थलों से होते हुए

उमरिया जिले की सीमा पर स्थित सोन नदी के किनारे मार्कंडेय आश्रम पहुंचें और उसके बाद माधवगढ़ किले में रात्रि विश्राम के बाद जब आगे बढ़े तो सोने व में जोहिला नदी के संगम स्थल पहुंचे और इस संगम स्थल पर पिता दशरथ का श्राद्ध किया और आगे शहडोल जिले के नगर होते हुए छत्तीसगढ़ से होते हुए नाशिक पंचवटी पहुंचे ।आदि स्थानों पर लोग श्राद्ध पक्ष के मौके पर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं और उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं।