मध्यप्रदेश में इस जगह मौजूद है माता का ऐसा मंदिर, जहां कलेक्टर खुद लगाते है मां को मदिरा का भोग, जानें पूरा इतिहास

मध्यप्रदेश में कई चमत्कारी और रहस्यमय मंदिर है। इसी बीच हम आपको मध्यप्रदेश के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां माता को महाअष्टमी के मौके पर मदिरा का भोग लगाया जाता है और इसका प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है। दरअसल यहां मंदिर मध्य प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित है। जिसे चौबीस खंबा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में हर वर्ष महाअष्टमी के मौके पर माता को जिले का राजा यानी कलेक्टर के द्वारा माता को मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर इस प्रसाद को सभी भक्तों में बांटा जाता है। इस मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शन करने पहुंचते हैं और माता भी उन भक्तों की मनोकामना पूरी करती है।

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जानिए मदिरा चढ़ाने का इतिहास

इस समय चैत्र नवरात्रि का पर्व चल रहा है। सभी माता मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। ऐसी भी हम आपको मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन के मंदिर के बारे में बता रहे हैं। जिसे चौबीस खंबा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में चैत्र नवरात्रि के मौके पर भक्तों की भीड़ लगी हुई है। माता को इस मंदिर में मदीरा का प्रसाद का भोग लगाने की परंपरा राजा विक्रमादित्य के शासन काल से चली आ रही है। कहते हैं जो जिले का राजा होता है वही माता को मदिरा का प्रसाद चढ़ाता है और ऐसे में जिले का राजा सिर्फ कलेक्टर ही होता है। ऐसे में हर वर्ष महा अष्टमी के मौके पर कलेक्टर आशीष सिंह के द्वारा माता को मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

बता दें कि चौबीस खंबा माता मंदिर देवी के दो रूप विराजमान है जिसमें देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित है। सुबह से यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है और पंडितों के द्वारा माता का सिंगार कर पूजन पाठ किया जाता है। कहते हैं राजा विक्रमादित्य इन देवियों की पूजा करते थे तब से लेकर आज तक महा अष्टमी के मौके पर माता की पूजन सरकारी अधिकारियों के द्वारा करने की परंपरा चली आ रही है। इस साल सरकारी अधिकारी की जगह अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज भी शामिल हुए हैं।

ऐसे होती है नगर पूजन

दरअसल नवरात्रि के मौके पर हर वर्ष महा अष्टमी पर चौबीस खंबा माता की पूजन के बाद कोतवाल एक हांडी में मदिरा लेकर 27 किलोमीटर तक पैदल भ्रमण कर रास्ते में आने वाले 40 मंदिरों में धार को अर्पित करते हैं। जब यहां मंदिर से भ्रमण शुरू करते हैं तो हांडी के नीचे एक छिद्र होता है जिससे मदिरा पूरे मार्ग में अर्पित होती चली जाती है।

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कहते हैं या परंपरा राजा विक्रमादित्य के युग से चली आ रही है। शहर में प्रवेश का प्राचीन चौबीस खंबा माता का द्वार माना जाता है। नगर रक्षा के लिए यहां 24 खंबे लगे हुए थे। इसलिए 24 खंबा द्वार कहते हैं। वहां पु​तलियां हर दिन मंदिर में आने वाले राजाओं से प्रश्न पूछती थी। एक बार विक्रमादित्य भी आए और उन्होंने नवरात्रि की महा अष्टमी पर मंदिर में पूजन किया और पुतलियों ने उनसे प्रश्न किया तो उन्होंने उसका जवाब दिया तब माता का मंदिर राजा को मिला और तभी से यहां परंपरा आज तक चली आ रही है।