इस गांव के प्रिंसिपल की अनोखी पहल, पूरे गांव को बनाया स्कूल, बच्चों को टीचर और हर घर के बुजुर्ग बने छात्र, ऐसे दे रहे अक्षर ज्ञान

इस देश में पढ़े लिखे होना सबसे जरूरी है, क्योंकि हमारा देश एजुकेशन के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ चुका है और यही कारण है कि अब हर घर में पड़े व्यक्ति मिल जाएंगे। हालांकि यह बात जरूर है कि हर किसी की सरकारी नौकरी नहीं लग सकती है, लेकिन अक्षरों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है ।आज हम आपको एक ऐसी खबर से रूबरू करवा रहे हैं, जहां छोटे-छोटे बच्चे अपने दादा दादी को अक्षर का ज्ञान करा रहे हैं। जी हां झारखंड के डुमका जिले के डूमररथ गांव में एक अनोखा ओपन स्कूल चल रहा है जहां पूरे गांव को स्कूल और छोटे बच्चों को टीचर और घर के बुजुर्गों को छात्र बनाया है।

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छोटे-छोटे बच्चे बुजुर्गों को करा रहे अक्षर का ज्ञान

दरअसल इंसान के पढ़े लिखे होना भी जरूरी है, क्योंकि अगर शब्दों का ज्ञान है तो वहां कुछ भी हासिल कर सकता है। हालांकि पुराने लोग पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन यह वहां दौर है जब हर व्यक्ति पढ़ा लिखा है और होना भी चाहिए, क्योंकि पढ़े लिखे व्यक्ति में हर चीज की समझ और ज्ञान होता है ।आज हम झारखंड के डुमका जिले के डूमररथ गांव की एक ऐसी कहानी बता रहे हैं, जहां पर एक अनोखा ओपन स्कूल खोला गया है।

इस गांव को स्कूल और छोटे छोटे बच्चे अपने दादा दादी को अक्षर ज्ञान करा रहे हैं ।उन्हें उनका नाम लिखना सिखा रहे और सबसे खास बात तो यह है कि इस ओपन स्कूल में बुजुर्गों की कक्षाएं उनके घरों की बाहरी दीवार पर बने ब्लैक बोर्ड पर ली जा रही है।

इनके आइडिया से शिक्षित होंगे बुजुर्ग

इस गांव में खोले गए ओपन स्कूल का ज्ञान और किसी ने नहीं बल्कि उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने दिया है। उनके मन में यह आइडिया आया कि क्यों ना अनपढ़ व्यक्तियों को भी अब अक्षर का ज्ञान सिखाया जाए। ऐसे में उन्होंने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि एक बुजुर्ग के एक शिक्षित होने से आने वाली पीढ़ी भी शिक्षित होगी। बस इसी सोच ने उन्हें इस आईडिया पर काम करने के लिए प्रेरित किया। डुमका जिले के डूमररथ गांव वहीं गांव है जहां कुछ समय पहले महामारी की वजह से स्कूल बंद होने से छात्र-छात्राओं को उनके घरों से बाहर ही ब्लैक बोर्ड बनाकर सामूहिक रूप से पढ़ाया गया था।

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बुजुर्गों को पढ़ाने का ये है मक्शत

इस पहल की शुरुआत महामारी में की गई थी और इसका असर भी अच्छा दिखने लगा था। यही कारण है कि अब बाहरी घरों पर बनी दीवारों पर ब्लैक बोर्ड का इस्तेमाल कर बच्चों को नहीं बल्कि बुजुर्गों को पढ़ाया जा रहा है। यहां पर छोटे.छोटे छात्र शिक्षक बनकर अपने बुजुर्ग दादा दादी को अक्षर का ज्ञान सिखा रहे हैं ।सपन ने बताया कि उनकी प्रबल इच्छा यही थी कि वहां बुजुर्गों को इतना काबिल बनाए जिससे कि वहां अपने गांव और अपना खुद का नाम लिख सके।

किसी कागज पर अंगूठा ना लगाते हुए साइन कर सके यही कारण है कि आज बुजुर्गों को शिक्षित किया जा रहा है। जब इस मामले में गांव वालों से चर्चा की गई तो वहां भी राजी हो गए। बता दें कि इस गांव में बच्चों को पढ़ाने के लिए 300 से अधिक बोर्ड लगाए गए थे और अब जब इस गांव में सर्वे करवाया गया तो अनपढ़ 138 बुजुर्ग के सामने आए अब इस गांव में उनके बड़े बेटे और पोतों के द्वारा उन्हें पढ़ाया जा रहा है।