मध्यप्रदेश में ये कैसी अनोखी परंपरा, महिलाओं ने युवाओं पर बरसाए डंडे, हंसते-हंसते खाई मार, देखें वीडियो

भारत धर्म प्रधान देश है और यहां की मान्यता और परंपरा कई तरह की है। यहां कुछ ही दूरी पर रीति रिवाज बदल जाते हैं। इसी बीच मध्यप्रदेश में एक अनोखी परंपरा है जो आदिवासियों द्वारा निभाई जाती है। इस अनोखी परंपरा का आयोजन हर साल चैत्र सप्तमी के मौके पर होता है। इस लोक परंपरा का त्यौहार गुड़तौड़ ब्रज की लठमार होली की तर्ज पर मनाया जाता है ।इसी बीच मध्य-प्रदेश के खरगोन जिले के धूलकोट में आदिवासियों द्वारा चैत्र सप्तमी की मौके पर गुड़तौड़ का आयोजन किया गया। जिसमें महिलाओं एवं युवतियों द्वारा युवाओं की लाठियों से पिटाई की गई यह परंपरा कई सालों से निभाई जा रही है जो आज भी प्रचलित है।

google news

दरअसल महामारी के 2 साल बाद मध्यप्रदेश में सारे धार्मिक तीज त्यौहार मनाए जा रहे हैं। सरकार द्वारा पूरी तरीके से प्रतिबंध हटा दिए गए हैं। इसी बीच खरगोन जिले के आदिवासी क्षेत्र के ग्राम धूलकोट में आदिवासी भिलाला समाज द्वारा गुड़तौड़ पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस पर्व में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के युवा पुरुष और महिला मौजूद रहते हैं। गुड़तौड़ पर्व ब्रज की लठमार होली की तर्ज पर मनाया जाता है। इसमें महिला पुरुष एवं बच्चे अपने परिवेश अच्छे वस्त्रों एवं आभूषणों को पहनकर इस परंपरा में शामिल होते हैं।

गांव का पटेल गांव गढ़ता है खंबा

चैत्र सप्तमी के मौके पर धूलकोट में आदिवासियों के द्वारा गुड़तौड़ पर्व धूमधाम से मनाया गया। जिसमें हजारों की संख्या में समाज के लोग पहुंचे। इसके साथ ही यहां अन्य लोग भी इस गुड़तौड़ पर्व को देखने पहुंचे थे। यहां पर सोटियों की मार के बीच मनाया गया। इसमें आदिवासी महिला पुरुष एवं बच्चे अपने पारंपरिक परिवेश में नजर आ रहे थे ।इस पर्व को मनाने के लिए गांव का एक पटेल बीच मैदान में 12 फीट ऊंचे खंभे को गढ़ता है। वहीं उस खंभे के ऊपर गुड एवं चने की दाल की पोटली 7 बार ऊपर बांधी जाती है।

वहीं भिलाला समाज के युवाओं के द्वारा दाल और गुड़ की पोटलियों को उतारते हैं, लेकिन वहां तक जाने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि इन तक जाते वक्त बीच रास्ते में महिला और युवतियां अपने हाथों में लाठिया लेकर खड़ी रहती है जिनकी मार के बीच युवा उस खंभे तक पहुंचते हैं।

google news

150 साल से निभाई जा रही परंपरा

बताया जाता है कि यहां परंपरा भिलाला समाज के द्वारा 150 साल से निभाई जा रही है। इस लोक पर्व को मनाने का उद्देश्य साल भर सुख समृद्धि के साथ ही स्वास्थ्य के लिए होता है। वहीं गुड़तौड़ प्रतियोगिता में जो युवा गुड़ और दाल की पोटली को उतार कर ले आता है उसे इनाम दिया जाता है, लेकिन उन पोटली तक जाने के लिए युवाओं को महिला और युवतियों की मार खानी पड़ती जिससे कई बार उनका जाना मुश्किल हो जाता है।