इस शख्स ने बना दी ऑटोमैटिक ईंट मेकिंग मशीन, अविष्कार कर देश-विदेश में बनाई पहचान, जानिए इसकी खासियत

अपने सपनों का घर बनाने के लिए हमें ईंट की आवश्यकता पड़ती है। इसे बनाने का काम कुम्हारों के द्वारा किया जाता है। यह लोग ईंट के भट्टे लगाकर मेहनत के बाद ईंट पकाते हैं जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है। इसे बनाने में काफी खर्च भी आता है, लेकिन आज हम आपको इस स्टोरी के जरिए एक ऐसी मशीन के बारे में बता रहे हैं। जिससे बिना अधिक खर्च और मेहनत के ईंट बनाई जा सकती है। यह सब किया है आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत हरियाणा स्थित एसएनपीसी ने जिन्होंने अब एक ईंट बनाने की मशीन बनाई है जिसे भारत में तैयार किया गया है। यह मशीन पूरी तरह ऑटोमेटिक ईंट मेकिंग मशीन है इसके द्वारा 1 घंटे में करीब 12 हजार ईंट बनाई जाती है।

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मशीन में मेहनत के साथ कम लगता है खर्च

दरअसल अभी तक देखा जाता है कि ईंट बनाने के लिए मिट्टी से लेकर पानी, मजदूर और कई चीजों की आवश्यकता पड़ती है। ईंट बनने के बाद उसे पकाने के लिए भट्टी लगाई जाती है जिसमें कोयली और लकड़ी की आवश्यकता पड़ती है। तब कहीं जाकर 24 घंटे बाद भट्टी में ईंट पकती है, लेकिन अब इतनी अधिक मेहनत करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, बल्कि अब भारत में एक स्वदेशी ऑटोमेटिक ईंट मेकिंग मशीन बनाई है जिसकी मदद से 1 घंटे में ही 12 हजार से अधिक ईंट बना सकते हैं। इस मशीन में ईंट बनाने के लिए मेहनत तो कम लगेगी ही साथ ही खर्चा भी कम होगा।

इस शख्स ने किया इस मशीन का अविष्कार

भारत में लोगों के पास में हुनर और काबिलियत की कमी नहीं है। आज के युवा तकनीक के जानकार हैं और अपने हुनर और योग्यता से कई तरह के अविष्कार कर रहे हैं। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार भी इनकी मदद करने में लगी है। ऐसे में यहीं युवा भारत में कई तरह के आविष्कार कर विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाते जा रहे हैं। ऐसे में अब हरियाणा के सतीश चिकारा जिन्होंने ऑटोमेटिक ईंट बनाने की मशीन का आविष्कार किया है। इस मशीन के द्वारा एक समय में बहुत अधिक ईंट तैयार की जा सकती है। इसमें किसी मजदूर की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

7 साल की मेहनत के बाद बनाई मशीन

एक रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने के लिए 25000 करोड़ों की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन ईंटों की आपूर्ति केवल 8250 करोड़ की हो रही है ।ऐसे में अब भारी तादात में ईंट बनाने का तरीका सतीश चिकारा ने खोज निकाला है। उन्होंने अब इस मशीन का आविष्कार कर एक नया आयाम पेश किया है। सतीश का कहना है कि उन्होंने साल 2007 में ईंटों के भट्टे में पार्टनरशिप में काम किया था। समय पर मजदूर नहीं मिलने की वजह से उन्हें काफी समस्या उत्पन्न हो रही थी। ऐसे में उन्होंने मशीनों का आविष्कार करने का मन बनाया और आज तकनीकी खोज के चलते उन्होंने इस मशीन का आविष्कार किया है। इस मशीन को बनाने में उन्हें 7 साल का वक्त लगा तब कहीं जाकर उन्हें इस तरह की सफलता हाथ लगी है।

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इन देशों को बेच चुके 250 मशीनें

सतीश का कहना है कि इस मशीन को पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश के साथ-साथ कई देशों में बेच चुके हैं। सतीश ने करीब 250 मशीन बनाकर बेच दी है। भारत सरकार की तरफ से भी सराहना मिली है। नेशनल स्टार्टअप अवार्ड 2020 में भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है और सतीश कि इस मशीन की देश भर से मांग आ रही है।