मुख्यमंत्री शिवराज के राज में अन्नदाताओं से भेदभाव, ओलावृष्टि सर्वे पर बयां किया दर्द

महामारी के दौर में मध्यप्रदेश के किसानों की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही है। पहले प्रकृति की मार और अब प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी किसानों की परीक्षा लेने से बाज नहीं आ रहे है। ऐसा ही एक मामला ग्वालियर जिले के ईटमां गांव में देखने को मिला,जहां किसानों की लगभग पूरी फसल तबाह हो गई है लेकिन सर्वे के नाम पर महज दिखावा किया जा रहा है।

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ओलावृष्टि से पीड़ित ग्वालियर जिले के चीनोर तहसील के ईटमां गांव इन दिनों काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां ओलावृष्टि से तबाह हुईं फसलों से खाली हुए खेत राजनैतिक अखाड़ा बने हुए हैं। ओलावृष्टि से नुकसान के शुरू हुए सर्वे में गांव के कुछ राजनैतिक लोगों के दबाब में पटवारी ने उनके समर्थक और परिजनों के नाम जोड़कर अपना सर्वे बंद कर दिया। जिसके बाद चस्पा की गई सर्वे सूची में केवल 315 किसानों के नाम आने से शेष ओला पीडित 1200 से अधिक किसानों में गांव के तथाकथित नेता और प्रशासन के खिलाफ नाराजगी का माहौल पैदा हो गया। वहीं इसकी जानकारी क्षेत्र में गूंजी तो बाहर से अन्य जनप्रतिनिधि पीड़ित किसानों के बीच पहुँचे। और उनका नाम सर्वे में जुड़वाने का आश्वासन दिया।

8 जनवरी को ओलावृष्टि से ईटमां गांव हुआ था प्रभावित

आपकों बता दें कि 8 जनवरी को क्षेत्र में हुई ओलावृष्टि से ईटमाँ गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। बड़े बड़े ओलों के गिरने से गांव के सभी किसानों की फसलें नष्ट हो गईं। जिसे देखते हुए प्रशासन ने ओलावृष्टि से फसलों को हुए नुकसान का सर्वे शुरू कराया था।

बहरहाल अब देखना यह होगा कि किसान मुखिया शिवराज सिंह चौहान ओलावृष्टि से प्रभावित किसानों को कितनी राहत देते है। यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा। बता दें कि यहां सर्वे लिस्ट में 1400 से महज 315 किसानों का नाम ही शामिल है ।

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