भारत की इकलौती ट्रेन जिसमें यात्रियों का नहीं लगता किराया, 25 गांव के लोग 73 साल से फ्री में कर रहे सफर, ये बड़ी वजह जानिए

भारतीय रेलवे में हर दिन बड़ी संख्या में यात्री सफर करते हैं। रेलवे अपने यात्रियों की सुविधा के अनुरूप कई तरह के बदलाव भी करती है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 12 हजार 167 पैसेंजर ट्रेन है इसके साथ ही 7 हजार 349 मालगाड़ी है। वहीं इन ट्रेनों में हर दिन करीब 2 करोड़ 30 लाख से अधिक यात्री सफर करते हैं जिसमें यात्रियों को अलग-अलग कैटेगरी के हिसाब से किराया भरना पड़ता है।

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इस समय रेलवे ने किराए में थोड़ी बढ़ोतरी कर दी है जिससे यात्रियों को परेशान होना पड़ रहा है, लेकिन इसी बीच यात्रियों के लिए एक और राहत की खबर यह है जिसमें भारत में ऐसी ट्रेन भी चलती है, जहां यात्रियों को किराया नहीं देना पड़ता, बल्कि फ्री में सफर कर सकता है। हालांकि आपको इस बात पर विश्वास नहीं होगा लेकिन नीचे दिए गए पैराग्राफ में आपके मन में जो भी सवाल उठ रहे हैं उसका जवाब मिल जाएगा।

इस ट्रेन में फ्री में कराया जाता है सफर

दरअसल भारतीय रेलवे एशिया का दूसरा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। हर दिन रेलवे में बड़ी संख्या में यात्री सफर करते हैं। वहीं जितना किराया यात्री देते है सुविधा उसी के अनुरूप मिलती है। ऐसे में अगर कोई कहे की ट्रेन में किराया नहीं लगता है तो आप विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बॉर्डर के बीच एक ट्रेन चलती है जिसमें 25 गांव के लोग पिछले करीब 73 सालों से फ्री में सफर कर रहे हैं।

दरअसल यह ट्रेन भाखड़ा नांगल बांध देखने के लिए चलाई गई थी जिसमें यात्री बिना टिकट के सफर कर रहे हैं, लेकिन आपके मन में अभी भी सवाल है कि आखिर इसके लिए फ्री में सफर क्यों कराया जा रहा है और इसकी इजाजत कैसे मिली है तो इसके बारे में नीचे विस्तार से और भी जानकारी दी गई है।

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इस वजह से नहीं लिया जाता किराया

आपकी जानकारी के लिए बता दें की हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बॉर्डर के बीच जो ट्रेन चलाई जा रही है। इसका संचालन भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के द्वारा किया जा रहा है। इस ट्रेन को चलाने के लिए पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाया गया था तब से आज तक यहां बने ट्रैक पर ट्रेन चलाई जा रही है। इस ट्रेन को चलाने का मुख्य उद्देश्य भाखड़ा डैम की जानकारी देने के लिए था, ताकि देश की भावी पीढ़ी इसके बारे में जान समझ और इस डेम के बारे में पता चल सके कि इसे बनाने में किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। इसी उद्देश्य से इस ट्रेन में सफर करने वाले यात्रियों से किराया नहीं लिया जाता है।

हर दिन 25 गांव के लोग करते है सफर

इस ट्रेन में रोजाना 25 गांव के 300 लोग सफर करते हैं इसकी शुरुआत 1949 में हुई थी। 73 साल से चली आ रही इस ट्रेन में सबसे ज्यादा छात्रों को लाभ मिलता है ।यह ट्रेन नंगल से डैम तक चलती है जिसमें दिन में दो बार सफर किया जा सकता है। इसमें खास बात यह है की ट्रेन के सभी कोच लकड़ी से बनाए गए हैं। वहीं इसमें होकर या फिर टीटीई नहीं रखा गया है।

इस ट्रेन को चलाने में रोजाना 50 लीटर डीजल लगता है जब इस ट्रेन का एक बार दिन में इंजन स्टार्ट किया जाता है तो वहां भाखड़ा से वापस आने के बाद ही बंद किया जाता है। इस ट्रेन में ओलिंडा, मेहला, भाखड़ा, हंडोला, वरमाला, खेड़ा बाद कालाकुंड समेत कई गांव के लोग इसमें सफर करते हुए नजर आते हैं।

यात्रियों को मिलती है ये सुविधा

वहीं यह ट्रेन हर दिन सुबह 7:05 से नंगल से शुरू होती है जो 8:20 को भाखड़ा से वापस मंगल की ओर लौटती है। फिर 3:05 से नंगल से चलती है 4:20 को भांगड़ा डैम से वापस मंगल की ओर आती है। इसी तरह दिन में दोपहर एयरट्रेन लगाती है। एक बार में नंगल से भांगड़ा डैम तक जाने में 40 मिनट का वक्त लगता है। इस ट्रेन में 10:00 बज गया है, लेकिन अब सिर्फ तीन बगिया ही बची है जिसमें एक डिब्बा पर्यटकों के लिए और 1 महिलाओं के लिए आरक्षित कर रखा है।