कुपोषण जड़ से खत्म कर रहा मध्यप्रदेश के इंदौर का गेहूं, इन 3 नई किस्म में खूब पाया जाता है पोषण, पीएम मोदी कर चुके सराहना

मध्यप्रदेश समेत देशभर में कुपोषण की समस्या मंडराती जा रही है। कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार और मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसके लिए देशभर में युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है। ऐसे में एक बहुत ही अच्छी खबर सामने आई है। दरअसल कुपोषण का दंश कम करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान संस्था इंदौर का अहम योगदान रहा है।

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गेहूं की 3 किस्में राष्ट्र को समर्पित

मध्य प्रदेश में लगातार कुपोषण की समस्या गहराती जा रही है। ऐसे में इसका हल अब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इंदौर ने निकाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा स्वच्छ शहर इंदौर के आईएआरआई में विकसित की गई गेहूं की ऐसी 3 किस्में राष्ट्र को समर्पित की है जिसकी रोटी पूरे देश में खाई जा रही है। दरअसल कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए गेहूं की रोटी खाई जा रही है। गेहूं की यह तीनों किस्म कुपोषण को जड़ से खत्म करती है।

12 साल की मेहनत में इन किस्मों को किया विकसित

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गेहूं की किस्मों के अंदर प्रोटीन, आयरन जिंक, काफी मात्रा में पाया जाता है जो देश का कुपोषण दूर करने में सबसे अधिक कारगर साबित हो रहा है। इंदौर के वैज्ञानिकों ने केंद्र के प्रयोगशाला व कृषि कॉलेज की जमीन में 12 साल की मेहनत से गेहूं की इन किस्मों को विकसित किया है। जानकारों का कहना है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस जमीन को बेचने का फैसला देश हित में नहीं होगा ।मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार और प्रशासन को इस पर सोचना चाहिए।

ये है वो खास किस्म के गेहूं

गेहूं की जिन किसानों की हम बात कर रहे हैं उनमें गेहूं कटाई 1633, पूजा वाणी एचडी 3298 और बीबीडब्ल्यू 303 है। प्रधानमंत्री ने 2022 में राष्ट्र को समर्पित किया था ।प्रधान कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि इस किस्म को किसानों की आय बढ़ाने के लिए कुपोषण दूर करने के लिए मददगार साबित हो रही है ।इसका उत्पादन औसतन 41.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है ।अधिकतम 65.8 क्विंटल की पैदावार ले सकते हैं।

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जानिए इन किस्मों की खासियत

उनका कहना है कि गेहूं की किस्में सबसे घातक रोग काले और गोरे रतुआ से बचाती है। वहीं खेती पर कीटों का प्रकोप नहीं होता है जिसका उत्पादन अच्छा मिलता है। यह किस्म मध्य प्रदेश सहित महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत कई प्रदेशों में पाई जाती है। पुराने गेहूं की किस्मों के मुकाबले इसमें अधिक मात्रा में 12.4 प्रतिशत प्रोटीन, 41.6 पीपीएम और 41.1 पीपीएम जिंक जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनसे चपाती और बिस्किट बन रहे हैं और आंगनबाड़ियों व स्वास्थ्य केंद्र में कुपोषित बच्चों को माताओं के हार को इसमें शामिल किया गया है।