सहारा प्रमुख को लेकर पटना हाईकोर्ट के आदेश से नाराज सुप्रीम कोर्ट, कहा- न्यायालय ने लांंघी है अधिकार क्षेत्र की सीमा

सहारा इंडिया के खिलाफ पटना हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है ।अभी तक इस मामले में किसी भी तरह का फैसला नहीं हुआ है। निवेशक अपने पैसे वापस लेने के लिए लगातार मांग पर अड़े हैं। इसी बीच सहारा प्रमुख सुब्रत राय को लेकर पटना हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश से अब सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पटना हाईकोर्ट ने सहारा प्रमुख सुब्रत राय को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने का निर्देश देकर अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। अन्य लोगों की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान इस तरह का आदेश जारी करके उच्च न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघी है।

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यह गलत चलन है, जो बढ़ रहा है

बता दें कि पटना हाई कोर्ट सहारा प्रमुख सुब्रत राय को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के निर्देश दिए थे, लेकिन अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पटना हाईकोर्ट से काफी नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुब्रत राय उस मामले में आरोपी नहीं थे जो पटना उच्च न्यायालय के समक्ष था। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि यह गलत चलन है जो बढ़ रहा है। जमानत के लिए दायर याचिका में आप उन मामलों की जांच करते हैं जो जमानत पर विचार के लिए अप्रासंगिक है। जमानत के लिए यह कैसे प्रासंगिक हो सकता है या तो आप जमानत खारिज करे या मंजूर करें।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट पटना हाई कोर्ट के उस आदेश पर भी रोक लगा चुका है। जिसमें निवेशकों का पैसा वापस नहीं करने को लेकर बिहार के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया था कि वहां सहारा प्रमुख को अदालत में समक्ष निजी तौर पर पेश करें।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर ने बताया अपने 22 साल के अनुभव में उन्होंने एक चीज सीखी है कि यह आपके अधिकार क्षेत्र से बाहर पीठ ने कहा हम यह नहीं कह सकते कि उच्च न्यायालय ऐसा नहीं कर सकता। यह अदालत कर सकता है, लेकिन उचित प्रारूप और अधिकार क्षेत्र के तहत धारा 488 में नहीं आता है।

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सुब्रत रॉय निवेशकों का पैसा कैसे लौटाएंगे

वहीं बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने बताया उच्च न्यायालय ने रॉय को अभियुक्त नहीं बनाया है। उन्हें योजना पेश करने को कहा है आखिरकार वह निवेशकों का पैसा कैसे लौटाएंगे। केवल यह कह रहे हैं कि ऐसी धारा 488 के तहत नहीं किया जाना चाहिए। मैंने कहा याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत का अनुरोध किया था और अदालत को केवल इस मामले पर विचार करना चाहिए कि क्या जमानत मंजूरी के लिए कोई प्रथम राष्ट्रीयता मामला बनता है या नहीं इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यदि इस तरह का आदेश सत्र अदालत की ओर से दिया जाता तो उच्च न्यायालय उस सत्र न्यायाधीश को आड़े हाथों लेता और यहां तक कि उसे न्यायिक अकादमी में जाने की सलाह भी देता।