डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना लेकर 19 साल की उम्र में आए थे इंदौर, किस्मत और सरकारी सिस्टम की वजह से बेच रहे समोसे, जानिए इस युवा का संघर्ष

आपने एमबीए चाय वाले की कहानी तो जरूर सुनी होगी। जिन्होंने एमबीए कर बड़ा सपना देखा था, लेकिन इसके बाद उन्होंने चाय का बिजनेस शुरू किया और आज उसी बिजनेस से साल का अच्छा खासा टर्नओवर कमा लेते हैं। आज हम मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी और देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के पीएससी समोसे वाले की कहानी बताने जा रहे हैं। जिनका सपना डिप्टी कलेक्टर बनने का था। इसके लिए वहां 6 साल पहले शहर आए, लेकिन वक्त ने ऐसा बदला कि आज वहां ऐसे मोड़ पर हैं जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते है। कहते हैं मेहनत करते हैं तो सफलता जरूर मिलती है ऐसे में अब छोटे से शहर से बड़े शहर में डिप्टी अफसर बनने का सपना लेकर आए युवा की दिलचस्प कहानी हैं।

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असफल रहने के बाद इस युवा ने नहीं मानी हार

इस आधुनिक दौर में हर युवा में सरकारी नौकरी का जज्बा होता है। कई युवा सरकारी नौकरी की चाहत में बड़े शहर में जाकर पढ़ाई करते हैं और एक वक्त ऐसा आता है कि जब वहां सफल नहीं हो पाते हैं तो ऐसा कदम उठाते हैं की उसे देखने वाले भी हैरान रह जाते हैं। आज हम एक ऐसे युवा की कहानी बता रहे हैं जो छोटे शहर से बड़े शहर में डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना लेकर पहुंचा था, लेकिन कोशिश करने के बावजूद भी असफल रहने तो कभी सरकारी सिस्टम आड़े आने से उसका यह सपना अधूरा रह गया। हालांकि इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी परिवार पर आर्थिक बोझ डालने की बजाय उसने अपना नया रास्ता निकाला और अपने सपने को ना भूलने के लिए खंडवा नाका पर समोसे की दुकान खोलकर उसका नाम ही पीएससी समोसे वाला रख दिया है।

पिता चाहते थे बेटा बने इंजीनियर

दरअसल जिस युवा की कहानी हम बताने जा रहे हैं वहां आर्थिक राजधानी और देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से करीब 900 किलोमीटर दूर रीवा जिले का है ।इसके गांव चोपड़ा में 24 दिसंबर 1997 को अजीत सिंह का जन्म हुआ। अजीत के परिवार में पिता सुभाष सिंह, मां सरोज सिंह, छोटा भाई आशीष सिंह, दादा रोहिणी प्रसाद सिंह है। अजीत के पिता किसान हैं और वहां किसान परिवार से ताल्लुकात रखते हैं। अजीत ने डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना देखा और इस सपने को पूरा करने के लिए 2017 में इंदौर आ गए। वहीं उनके पिता चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने पर अजीब प्रशासनिक सेवा में ही जाना चाहते थे।

19 साल पहले 2017 में आए थे इंदौर

अजीत डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना लेकर मार्च 2017 यानी 19 साल की उम्र में इंदौर आए। उन्होंने एक किराए का कमरा लिया पीएससी की तैयारी के लिए कोचिंग भी ज्वाइन कि। यहां रहकर डिप्टी कलेक्टर की तैयारी करना भी शुरू किया। 5000 महीना पिता भेजते थे। ऐसे में वहां एक दोस्त के साथ रूम शेयर करके रहते थे। खाना भी खुद बनाकर खाते थे और पढ़ाई का खर्च भी पिता के पैसों से ही चल रहा था।

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2018 में अजीत ने डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना और कुछ कर दिखाने के जज्बे के साथ पीएससी कोचिंग जॉइनिंग कर ली। अजीत ने 2019 में एग्जाम दी, लेकिन मामला कोर्ट जाने से रिजल्ट नहीं आया। 2020 में एग्जाम दी हालांकि वह प्री नहीं निकाल सका ।इसके बाद 2021 में फिर एग्जाम दी लेकिन रिजल्ट नहीं आया। अजीत का कहना है कि ना तो एमपीपीएससी की भर्ती प्रक्रिया निरंतर हो रही है और ना ही एसआई, पटवारी और व्यापम की अन्य परीक्षाएं आयोजित की जा रही है।

दोस्तों की मदद से किराए की दुकान खोली

अजीत के पिता काफी मेहनत करते हैं और उसको पैसे भी भिजवाते है, लेकिन लगातार आर्थिक बोझ में दबे रहते हैं परिवार के लोग भी बार-बार पूछते हैं। बेटा रिजल्ट कब आएगा मगर अजीत के पास कोई जवाब नहीं रहता है। आर्थिक समस्या बढ़ गई गांव में बारिश की कमी के चलते 20 बीघा खेत में फसल नहीं लग पाई। नुकसान अलग हो गया आर्थिक संकट से जूसते पिता को देख उन्होंने इंदौर में रहकर ही तैयारी की और अपना खर्च उठाने का फैसला कर लिया। ऐसे में कुछ दोस्तों की मदद से उसने 10000 महीने की दुकान किराए पर ली। उसने पीएचसी समोसा वाला नाम से दुकान खोली ।

दुकान में रखी है पीएससी की कई किताबें

1 सितंबर को ही उसने खंडवा रोड स्थित गणेश नगर में यह दुकान खोली है, जहां अब लोगों की भीड़ भी समोसे के लिए लगने लगी है। इसके अलावा उनकी दुकान में अखबार रखने की बजाय उन्होंने पीएससी एग्जाम में काम आने वाली किताबें भी रख रखी है। जब ग्राहक नहीं रहते हैं तो उन किताबों को पढ़ते हैं और उसकी तैयारी में जुटे रहते हैं।