13 साल की उम्र में पिता का छूटा साया, फुटपाथ पर साबुन बेचकर बनें डॉक्टर, अब 37 हजार बच्चों की फ्री सर्जरी, ऐसा है संघर्ष

दुनिया में कई लोग हैं जो समाज सेवा करने में लगे हैं, लेकिन कहते हैं नारायण सेवा ही नर सेवा है। इसी कहावत को चरितार्थ उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह ने किया है। वहां अब कटे होंठ वाले नवजात शिशुओं की फ्री सर्जरी करते हैं। इसके लिए किसी भी तरह का पैसा नहीं लेते है। इनकी कहानी काफी दिलचस्प और इमोशनल करने वाली है। दरअसल डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह जब 13 साल की उम्र के थे उस समय उनके पिता दुनिया छोड़कर चले गए थे। इसके बाद उनका जीवन काफी संघर्ष भरा था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने काफी मेहनत की और सड़कों पर सामान बेचने के साथ ही दुकानों पर छोटी-मोटी नौकरी किया करते थे।

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बच्चों की कटे होंठ की फ्री करते है सर्जरी

वहीं उनके घर की हालत काफी खराब थी इसके लिए उनके भाइयों को मजबूरन पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन सुबोध की पढ़ाई जारी रखी और आखिरकार उन्होंने डॉक्टर बनने के सपने को पूरा किया है। दरअसल इस दुनिया में कई तरह के इंसान हैं और उनमें काबिलियत है कूट-कूट कर भरी है। ऐसे ही अब उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह है जो कि अमेरिका के एक एनजीओ स्माइल ट्रेन के साथ मिलकर कटे होंठ वाले नवजात शिशु की फ्री सर्जरी करते है।

10वीं के बाद जनरल स्टोर पर किया काम

सुबोध ने मीडिया को जानकारी देते बताया कि उनका जीवन काफी संघर्ष से भरा था। उनकी पढ़ाई के लिए भाइयों ने अपनी पढ़ाई को छोड़कर उन्हें पढ़ाया था इसलिए उन्होंने अपने भाई के त्याग फिजूल ना चला जाए इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की और दसवीं की परीक्षा के दौरान एक जनरल स्टोर में भी काम किया। वहीं पढ़ाई के साथ खाना भी बनाते थे। मां का बीमार थी इसलिए घर चलाने की जिम्मेदारी चारों के कंधों पर थी। वहीं उन्होंने संघर्ष के बाद सफलता की सीढ़ी चढ़ी है।

1983 में राज्य संयुक्त फ्री मेडिकल टेस्ट किया पास

सुबोध का कहना है कि उनके पिता रेलवे में क्लर्क की नौकरी करते थे। पिता के जाने के बाद बड़े भाई को मुआवजा राशि और नौकरी भी मिली थी, लेकिन पिता की ग्रेजुएटी और बड़े भाई की सैलरी से कर्ज चुकाते थे। इसके बीच उनका घर चलाना काफी मुश्किल हो रहा था। इसके लिए उन्होंने घर पर बनी मोमबत्तियां, काले चश्मा, साबुन को सड़कों और स्थानीय दुकानों पर बेचना शुरू किया, लेकिन इसके बावजूद भी सुबोध ने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और संघर्ष से लड़ते रहे। इसके बाद 1983 में आर्म्ड फोर्सज मेडिकल कॉलेज पुणे में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश राज्य संयुक्त फ्री मेडिकल टेस्ट पास कर लिया।

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2004 में पिता की याद में खोला अस्पताल

इसके बाद उन्होंने बीएचयू से मेडिकल की पढ़ाई करने का विकल्प चुना और अपनी मां के पास रहकर उनकी देखभाल करने के साथ ही अपने सपनों को साकार करने लगे। इसके बाद वहां सामान्य सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी से स्पेशलाइजेशन का अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद उन्होंने 1993 से प्रैक्टिस शुरू की उसके बाद 2004 में पिता को श्रद्धांजलि देते हुए उनके नाम पर जीएस मेमोरियल नामक एक छोटा सा अस्पताल खोला और आज कटे होठ वाले बच्चों कि वहां सर्जरी करते हैं इसके लिए किसी भी तरह का पैसा नहीं लेते हैं।