इंदौर का अद्भूत मंदिर: बेल्जियम के कांच और चांदी से ईरान और जयपुर के कारीगरों ने बनाया कांच मंदिर, जानिए खासियत

मध्यप्रदेश में कई धार्मिक स्थल होने के साथ ही ऐसे पर्यटक स्थल भी है, जहां पर लोग प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने पहुंचते हैं। ऐसे में हम आपको मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी और देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के कपड़ा बाजार के बीच बने एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां ईश्वर में आस्था रखने के साथ ही कलात्मकता को निहारने वालों और अध्ययन शोध करने वालों को अपनी और आकर्षित करता है। बता दें कि यह मंदिर पूरा कांच से बना हुआ है। यहां बेल्जियम के कांच और चांदी से ईरान और जयपुर के कारीगरों ने इसे बनाया है। आइए जानते हैं इस मंदिर में आखिर क्या है खासियत..

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इस जगह बना है कांच मंदिर

वैसे तो मां अहिल्या की नगरी इंदौर में कई तरह के पर्यटक स्थल होने के साथ ही कई ऐसे मंदिर हैं जो कि विश्व प्रसिद्ध है। खजराना गणेश मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस मंदिर में आम जनता से लेकर नेता और बॉलीवुड के अभिनेता भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। ऐसे में अब इंदौर के इतवारिया बाजार में दुकानों के बीच राजस्थान की हवेली की याद दिलाती है। इमारत जितनी खूबसूरत बाहर से नजर आती है उससे कई ज्यादा सुंदर अंदर से आती है। हम बात कर रहे हैं इंदौर के कपड़ा बाजार के बीच बने कांच मंदिर की जिसमें हर दिन बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।

मंदिर ने पूर्ण कर लिया 101 वर्ष

दरअसल यह मंदिर अंदर और बाहर दोनों तरफ से काफी खूबसूरत नजर आता है। दिलवाड़ा के जैन मंदिर संगमरमर पर की गई नक्काशी के कारण जग में काफी प्रसिद्ध है। इंदौर का यह कांच मंदिर सजा होने के कारण सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर में लगे कांच को बेल्जियम से लेकर आए थे और उसके साथ चांदी की कारीगरी वाला या मंदिर कांच मंदिर के नाम से पहचाना जाता है। तीन मंजिला मंदिर 11 जुलाई को अपने निर्माण के 101 वर्ष पूर्ण कर रहा है।

1912 में रखी गई थी मंदिर की नींव

बता दें कि इस मंदिर की नींव 1912 में रखी गई थी ।1921 में इस मंदिर को पूर्ण रूप से स्थापित कर दिया गया था। भगवान शांतिनाथ को समर्पित यह जैन मंदिर होलकर शासनकाल में इंदौर शहर के सेठ हुकमचंद कस्तूरचंद और तिलोकचंद कासलीवाल ने बनवाया था। वहीं इस मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी और संचालन की व्यवस्था जो जारी की गई थी। वहीं आज तक चल रही है। वहीं मंदिर के साथ ही शांतिनाथ दिगंबर जैन धर्मशाला और दुकानें बनाई गई है, ताकि उसके जरिए जो भी आए हो उस दिन मंदिर का रखरखाव किया जा सके।

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इस मंदिर में आप जब भी प्रवेश करेंगे तो अंदर देखेंगे केवल दीवार पर ही नहीं बल्कि छत और फर्श पर भी कांच लगाए गए हैं। कांच के पीछे चांदी की परत लगाई गई है जो पारदर्शिता को रोका गया है। इस मंदिर का निर्माण जयपुर और इरान से कारीगर बुलाकर कराया गया था ।पौराणिक कथाओं का अंकन भी इस कांच मंदिर के अंदर किया गया है। गर्भगृह में कांच कुछ इस तरह से लगाए हैं। वहीं मूर्तियों के प्रतिबिंब स्वरूप 24 जिन प्रतिमाएं दिखाई देती है।

सुबह 11 से शाम 5 बजे तक खुलता है मंदिर

बता दें कि इस मंदिर को तीन मंजिला बनाया गया है जो कि सुबह 11:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक इसमें लोग घूम सकते हैं। वहीं प्रथम तल पर देव मूर्तियां स्थापित है और ऊपरी मंजिल में सरस्वती का भंडार बनाया गया है। यहां पर 417 ग्रंथों का संग्रह है जिसमें हस्तलिखित पांडुलिपि भी मौजूद है।