एमपी में यहां साल में एक बार ही होते हैं भोलेनाथ के दर्शन,सबसे पहले TI करते पूजा,जानिए क्या है रहस्य

आस्था की ऐसी परम्परा जिसे सुनकर कोई भी चकित हो सकता है, नदी के बीचो-बीच बने एक कुंड में विराजित शिवलिंग की पूजा सबसे पहले थाना प्रभारी करते है, फिर बांकी श्रद्धालुओं को पूजा करने का अवसर मिलता है, यह परंपरा एक दो वर्ष से नही बल्कि आजादी के पहले 1944 से चली आ रही है, कुनुक नदी के बीच स्थित यह कुंड सैकड़ों गांव के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ हैं।

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शहडोल जिले के अंतिम छोर में बसे जैतपुर कस्बे के ठीक बगल से कुनुक नदी बहती है, जहां बीच नदी में 20 फ़ीट गहरा एक कुंड है, कुंड में शिवलिंग विराजित है..मान्यता है कि जैतपुर थाने के पहले थाना प्रभारी नर्मदा प्रसाद श्रीवास्तव और वहां के सरपंच स्वर्गीय राममनोहर शर्मा को एक ही रात सपना आया कि कुनुक नदी के बीच एक कुंड है, जहां पर एक शिवलिंग है, बुजुर्ग रामप्रमोद शर्मा बताते है कि थाना प्रभारी और सरपंच राममनोहर शर्मा ने नदी के बीच खुदाई करवाई, जहां सपने के मुताबिक कुंड और शिवलिंग दोनों मिले, जिसके बाद से मकर संक्रांति के मौके पर हर वर्ष पहली पूजा कोतवाल करते आ रहे है।

इस जगह लगता है 5 दिवसीय मेला

कुनुक नदी के बीच कुंड और शिवलिंग मिलने के बाद से ही वहां श्रद्धालुओ का जमघट लगने लगा, पहले तीन दिन का मेला लगता था, फिर बाद में यहां पांच दिवसीय मेले का आयोजन होने लगा, बीते 3 वर्ष से कोरोना काल के दौरान मेला का आयोजन तो नही हो सका, लेकिन श्रद्धालू अपनी आस्था लेकर शिवलिंग के दर्शन करने अवश्य पहुंचते है..कुंड में रोजाना पानी भर जाता है, जिसे भक्त सुबह-सुबह बाहर निकलते है, जिसके बाद यहां पूजा पाठ शुरू होती है।

कुनकेश्वर पुराण नामक पुस्तक की हुई रचना

इसको लेकर पूर्व सरपंच स्वर्गीय राममनोहर शर्मा के पुत्र रामप्रमोद शर्मा बताते है कि उनके पिता ने इस पूरे घटना क्रम को लेकर कुनकेश्वर पुराण नामक एक पुस्तक की रचना भी की थी, जिसको उनके स्मृति के तौर पर आज भी सहेज कर रखा गया है। फिलहाल कोरोना के चलते इस साल मकर संक्रांति पर कोई बड़ा आयोजन तो नहीं हुआ लेकिन भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त जरुर पहुंचे।

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