मध्यप्रदेश के इस जिले में मौत पर मनाया उत्सव, बुजुर्ग की अर्थी लेकर नाचते-गाते पहुंचे श्मशान, जाने ऐसा क्यों किया

इस दुनिया में जब कोई व्यक्ति का निधन होता है तो उसके परिवार के लोगों का रो-रोकर बुरा हाल होता ही है, आस पड़ोस के लोगों के भी बुरे हाल होते है, लेकिन इसी बीच हम आपको ऐसी कहानी बतायेंगे इसे पढ़कर आप भी हैरान रह जायेंगे। मध्यप्रदेश के धार जिले में व्यक्ति निधन के बाद उसे अनोखे अंदाज में विदाई दी जाती है। एक और ताजा मामला सामने आया है, जहां एक बुजुर्ग को अनोखे तरीके से अंतिम विदाई दी गई। अंतिम यात्रा में शामिल लोग ढोलक की थाप पर , नाचते हुए, अर्थी को कंधा देते हुए मुक्तिधाम तक पहुंचे।

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अंतिम संस्कार की यह परंपरा धार जिले के तिरला ब्लॉक के भुवादा गांव में निभाई गई। गांव में बुजुर्ग के निधन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। गांव के 103 साल के बुजुर्ग जामु भंवर की रविवार को मौत हो गई। उन पर कुछ दिन पहले बैल ने हमला कर दिया था। हमले में घायल जामु उम्रदराज होने से रिकवर नहीं कर पाए। घर पर ही अंतिम सांस ली। बुजुर्ग की अंतिम यात्रा गांव से निकाली गई। श्मशान घाट तक अंतिम यात्रा में मृदंग, झांझ और ढोलक को बजाया गया।

कालांतर से चली आ रही है परम्परा

सामाजिक कार्यकर्ता विजय चोपड़ा ने बताया कि आदिवासी समाज की यह ऐतिहासिक प्रथा है। समाज उम्रदराज व्यक्ति के पंचतत्व में विलीन होने पर उसे उत्सव के रूप में मनाता है। यह प्रथा कालांतर से चली आ रही है। अंतिम यात्रा के समय घर में रखा अनाज, कुल्हाड़ी, तांबे की थाली, लोटा और चांदी के गहने अर्थी के साथ रखे जाते हैं। दाह संस्कार के समय अर्थी के चार फेरे उल्टे लेकर सभी गांठों को कुल्हाड़ी से काटकर मृतक को सभी बंधन से मुक्त किया जाता है।

नुकता के पश्चात गाता स्थापित करने की परंपरा

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दाह संस्कार पूर्ण रूप से आदिवासी संस्कृति अनुसार किया जाता है। दाह संस्कार के तत्काल बाद तरत (तीरथ) भोज कराया जाता है। परम्परा में नुकता घाटा अपनी सुविधा अनुसार किया जाता है। 12 दिन बाद करने का कोई रीति-रिवाज नहीं है, तो वही नुकता के पश्चात गाता स्थापित करने की परंपरा भी आदिवासियों में है।

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