पुलवामा आतंकी हमले की तीसरी बरसी, 14 फरवरी थी वो तारीख जब देश के 40 जवान हुए थे शहीद, याद कर फफक पड़ता है परिवार

देशभर में 14 फरवरी पुलवामा आतंकी हमले की तीसरी बरसी मनाई जा रही है। 3 साल पहले सीआरपीएफ के जवानों से भरी बस को आतंकियों ने आईईडी से लदी गाड़ी से टक्कर मारकर ब्लास्ट कर दिया था। इस हादसे में करीब देश के 40 जवान शहीद हो गए थे जिनमें 2 जवान बिहार के भी शामिल थे। यह हादसा इतना आत्मघाती था जिसे भुलाया नहीं जा सकता है इस दिन पूरा देश सीआरपीएफ जवानों के बलिदान को याद करता है।

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14 फरवरी 2019 को हुआ था पुलवामा अटैक

दरअसल 14 फरवरी 2019 जब पूरा देश वैलेंटाइन डे मना रहा था वहीं दूसरी ओर घड़ी में जैसे ही 3:00 बजे हर किसी की आंख टीवी और सोशल मीडिया पर चिपक गई। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया था। सीआरपीएफ के जवान अपनी छुट्टी पूरी कर देश सेवा के लिए लौट रहे थे उसी दौरान आतंकियों ने आईईडी से लदी कार से बस में टक्कर मार दी थी इस दौरान ब्लास्ट होने से करीब 40 जवान शहीद हो गए थे। इस हादसे में किसी ने भाई किसी ने बेटा तो किसी ने अपने पति को खोया था। यह हादसा इतना भयानक था इतना आत्मघाती था इसे आज भी 14 फरवरी को देश के जवानों को याद कर बलिदान दिवस के रुप में मनाया जाता है।

शहीद का बेटा फौजी बनकर दुश्मनों से लेगा बदला

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में भागलपुर के लाल रतन ठाकुर भी शामिल थे। इस हमले में वह वीरगति को प्राप्त हो गए थे, लेकिन उनके 6 वर्षीय बेटे के सिर से पिता का साया उठ गया था। बेटे ने कहा मैं अपने पापा की तरह बनना चाहता हूं और पापा की तरह बनकर उनके साथ हमले का दुश्मनों से बदला लूंगा। शहीद रतन ठाकुर के परिवार की मदद के लिए सरकार ने कई तरह के वादे किए थे, लेकिन अभी तक पूरे नहीं हुए है।

किराए के मकान में रहने को मजबूर शहीद का परिवार

दरअसल इस हादसे में देश ने रतन ठाकुर जैसे वीर जवान को खोया था। उनके परिवार की आज तक सरकार ने मदद तक नहीं की है। आज भी उनका परिवार किराए के मकान में रहने को मजबूर है। इतना ही नहीं शहीद के परिवारों को अपने पैतृक गांव में श्रद्धांजलि कार्यक्रम भी आयोजित करना होता है तो वहां खुद के पैसे से करते हैं। शहीद रतन ठाकुर के पिता की माने तो बिहार सरकार और जनप्रतिनिधियों की ओर से कई तरह की सुख सुविधाओं के साथ ही मदद की घोषणा की गई लेकिन आज तक किसी भी तरह की मदद नहीं मिली। गांव में गंदी नाली के बीच में घर बना हुआ है जिसमें स्वास्थ्य को लेकर चिंता बनी रहती है।

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आज भी उस दिन को याद कर रो पड़ता है परिवार

वह मंजर देश के हर व्यक्ति को याद है लेकिन उस परिवार का क्या हाल है जिसके ऊपर यह सब कुछ गुजरा है। रतन ठाकुर के शहीद होने के बाद पैतृक गांव में अंतिम संस्कार किया गया था, लेकिन आज भी उनके पिता उस मंजर को याद कर रो पड़ते है। उन्होंने बताया कि उन्होंने घटना को टीवी पर देखा था उसी समय उन्हें अनुमान हो गया ​था कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया है।

पत्नी ने स्मारक बनवाने की मांग की

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शहीद रतन ठाकुर के दो बेटे हैं जिनमें एक 6 वर्ष तो दूसरा 3 वर्ष का है। इस हमले में जब रतन ठाकुर शहीद हुए थे उस समय उनक प​त्नी की कोख में रामचरित था वहीं 3 वर्ष के कृष्णा ने अपने पिता को मुखाग्नि दी थी । अब वहां अपने पिता की तरह फौजी बनकर देश सेवा करना चाहता है और दुश्मनों से बदला लेने की भी बात कर रहा है। पत्नी राजनंदिनी ने पति के स्मारक बनवाने की मांग कर रही है। जिला परिषद से उन्होंने कई बार आग्रह किया है इसके साथ ही बेटे को फौजी बनाकर पिता जैसे बहादुर बनायेगी।