100 साल पुरानी धरोहर बदहाल, जानिए क्यों बनवाया था महाराजा वेंकट रमन सिंह ने वेंकट भवन

मध्यप्रदेश के रीवा में सौ साल से भी अधिक पुराना व्यंकट भवन जो अपनी अनोखी शिल्पकला के लिए जाना जाता है। इस भवन का हर कोना अपनी खूबियों को सहेजे हुए है। गोलाकार हौज के ऊपर ही पूरा महल खड़ा हुआ है। इसको बनाते समय इस बात का ख्याल रखा गया है की भवन को धरती आकाश और पाताल से जोड़ा जाए इसे शिल्पकला का अदभुत नमूना माना जाता है लेकिन अब अनदेखी के चलते यह ऐतिहासिक भवन अपनी पहचान खोने के साथ ही जर्जर होता जा रहा है। इस व्यंकट भवन का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है इसका निर्माण महराजा व्यंकट रमण सिंह ने कराया था जिनका कार्यकाल 1880 से 1918 रहा है।

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महाराजा व्यंकट रमण सिंह बहुत ही दयालु उदार बहुत ही साहसी व्यक्ति थे और अपनी प्रजा की मदद करने के लिए हर हाल में तैयार रहते थे इस व्यंकट भवन के निर्माण के पीछे अपना एक अलग इतिहास रहा है। इतिहासकार बताते है की 1894 में रीवा में बहुत ही भयानक बारिश हुई और उस बारिश से पूरा रीवा बाढ़ की चपेट में आ गया लोगों का सब कुछ ख़राब हो गया लोगों के पास बेरोजगारी आ गई भूखों मरने की स्थित आ गयी जिसके बाद लोग यहां से पलायन करने लगे उसी दौरान महराजा व्यंकट रमण सिंह भोपाल रियासत के बुलावे पर भोपाल में ताजुल मस्जिद देखने गए हुए थे।

इन कारीगरों का खास योगदान

रीवा से पलायन कर गए शिल्पकारों ने अपने नरेश को देखकर बहुत खुश हुए तब रीवा नरेश को ये लगा की ये तो हमारी जनता है ये यहां क्या कर रही है तो महराजा व्यंकट रमण सिंह ने उन लोगों से पूछा की आप लोग यहां क्या कर रहे है तो उन लोगों ने अपनी आपबीती बताई की रीवा में बाढ़ आ गई तबाही आ गई को काम धंधा ही नहीं बचा करने को इसलिए यहा चले आए जिसके बाद महराजा ने सब को रीवा बुलाया और रीवा में एक अंग्रेज इंजिनियर हैरिसन से एक आलिशान भवन का नक्शा बनवाया और बिछिया मोहल्ले के एक मशहूर कारीगर को भी उसमे शामिल किया गया और जो रीवा के और शिल्पकार थे उन्हें भी उसमे शामिल किया गया।

तीन साल में बना ये भवन

वेंकट भवन का निर्माण ही इसीलिए कराया गया था की रीवा के लोगों को रोजगार मिल सकें कारीगरों ने खूब मेहनत कर अपनी कला का जौहर दिखाते हुए भवन का निर्माण किया ऐसा भवन शायद ही कही और हो क्योंकि ये अपने आप में बहुत सारी खूबियों को समेटे हुआ है, जिसमे राजपुताना , ब्रिटिश और मुगलकाल की शिल्पकलाओं का संगम है। वक़्त बदलता गया और देखरेख के अभाव में अब यह अपनी अनदेखी का शिकार होता जा रहा है और यह ऐतिहासिक भवन अपनी पहचान खोता जा रहा है और इसकी हालत जर्जर होती जा रही है अगर इसकी इसी तरह अनदेखी चलती रही तो इस भवन की जो ख़ूबसूरती है वो देखने को नहीं मिलेगी।

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