महाकाल की नगरी में रमजान महीने की अनोखी परंपरा, जानिए आखिर 150 साल से क्यों चलाई जा रही तोप

देश में 2 अप्रैल से रमजान का महीना शुरु हो गया है। इसको लेकर सभी मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा अल्लाह से इबादत की जा रही है। वहीं 3 अप्रैल को पहला रोजा रखा गया था इस समय मुस्लिम समुदाय के द्वारा रमजान महा को हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं। इसी बीच मध्य प्रदेश के महाकाल की नगरी उज्जैन में रमजान महीने की एक अलग ही प्रथा है। बताया जाता है कि यहां डेढ़ सौ साल से सुबह और शाम सहरी और इफ्तार के समय तोप चलाई जाती है। यह प्रथा कई सालों से चली आ रही है जिसे आज भी निभाई जा रहा है। पहले इस प्रथा को नवाबों के द्वारा निभाई जाती थी, लेकिन आज मुस्लिम समाज के लोग इस प्रथा को निभाते आ रहे हैं।

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150 साल से जिंदा है तोप चलाने की प्रथा

उज्जैन जिले के तोपखाने इलाके में डेढ़ सौ साल से इस प्रथा को मुस्लिम समुदाय के लोग निभाते आ रहे हैं। पहले नवाबों द्वारा तोप चलाने की प्रथा को निभाते थे। बताया जाता है कि रमजान माह में सुबह और शाम तोप चलाई जाती थी, लेकिन अब नवाबों के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस प्रथा को जिंदा रखा है। दरअसल तोप को चलाने के लिए एक बार में 100 ग्राम बारूद की आवश्यकता पड़ती है। अगर पूरे 3 महीने की बात करें तो 3 किलो बारूद का उपयोग तोप चलाने के लिए किया जाता है।

तोप इकट्ठा होता था मुस्लिम समाज

उज्जैन जिले के तोपखाना क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि डेढ़ सौ साल से चली आ रही यह परंपरा आज भी निवाई जा रही है ।उनका कहना है कि एक समय था जब तोप की आवाज से लोगों को इकट्ठा किया जाता था, लेकिन अब बड़ी बड़ी बिल्डिंग और इमारते बन जाने की वजह से इसकी आवाज लोगों के घरों तक नहीं पहुंच पाती है। अब अगर बात करें तो तोप की आवाज महज 3 किलोमीटर जाकर रूक जाती है।

मंदिर से 500 मीटर स्थित है तोपखाना

बता दें कि बाबा महाकाल मंदिर से 500 किलोमीटर की दूरी पर ही तोपखाना क्षेत्र है। यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग निवास करते हैं। इस जगह हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं और यहां कभी भी किसी भी तरह की सौहार्द बिगाड़ने वाली खबरें यह जानकारी सामने नहीं आई है। ऐसे में मुस्लिम समुदाय के द्वारा आज भी तोप चलाने वाली प्रथा को निभाई जा रही है।

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