आस्था के नाम पर मध्यप्रदेश के बैतूल में निभाई जाती है यह खतरनाक परंपरा, नदी में छोड़ दिया जाता है नवजात
Old Tradition of Poorna River Betul : टेक्नॉलॉजी के मामले में चाहे हम 21वीं सदी की बात करते हो लेकिन आज भी आस्था और अंधविश्वास में लोगों का नजरिया ज्यादा नहीं बदल पाया है। आज भी बहुत से स्थानों पर आस्था के नाम पर अंधविश्वास इस तरह से फैला हुआ है कि लोग इसको लेकर किसी भी हद तक गुजर जाने को भी तैयार होते हैं। ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के बैतूल से सामने आया है।
जहां पर आज भी आस्था और अंधविश्वास के नाम पर एक ऐसी प्रथा को निभाया जाता है जो कि नवजात बच्चों के लिए काफी खतरनाक हो सकती है।
बता दें कि यह पूरा मामला बैतूल के भैसदेही की पूर्णा नदी से जुड़ा हुआ है। इस नदी को लेकर यह माना जाता है कि यहां पर मांगी जाने वाली हर मन्नत पूरी हो जाती है। लेकिन बताया जाता है कि यहां ज्यादातर वह लोग आते है जिन्हें संतान की प्राप्ति नहीं होती है। मान्यता है कि नदी पर आकर मन्नत मांगने से संतान की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन जब संतान की प्राप्ति हो जाती है तो उसे कार्तिक पूर्णिया के बाद यहां पर आया भी जाता है और आने में बिठाकर नदी में छोड़ दिया जाता है जो कि काफी खतरनाक भी साबित हो सकता है।
ग्रहण के बावजूद उमड़ी भीड़
MP: बैतूल के भैंसदेही से निकलने वाली पूर्णा नदी के बारे में यह मान्यता है कि संतान हीन दंपत्तियों को यहां आने पर फ़ायदा होता है।
— काश/if Kakvi (@KashifKakvi) November 9, 2022
हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर नदी के किनारे मेला लगता है।
जिनकी मुराद पुरी हो जाती हैं वो पूजा करवा कर बच्चे को पालने में डालकर नदी पार कराते है। pic.twitter.com/Ln3o8zZSCY
गौरतलब है कि यह परंपरा आज से मेरी सदियों से चली आ रही है जिसमें दूर दूर से लोग यहां पर मन्नत मांगने के लिए आते हैं कहा जाता है ज्यादातर लोगों की यहां पर आने के बाद मन्नत पूरी हो जाती है और संतान की प्राप्ति होने के बाद ही तरह से ही खुद माता-पिता ही अपने बच्चे को पालने में बिठाकर नदी में छोड़ देते हैं। इतना ही नहीं नदी के पानी को दूध पीने वाले नवजात बच्चों को पिलाया जाता है जो कि उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
कार्तिक पूर्णिमा के समय पूर्णा नदी में मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें काफी संख्या में लोग आते हैं इसके बाद ही जिन लोगों को यहां से मन्नत मांगने के बाद संतान की प्राप्ति होती है। उन बच्चों को पालने में बैठाकर नदी में छोड़ दिया जाता है इस परंपरा को 3 दिनों तक निभाया जाता है। यहां परंपरा सदियों से चली आ रही है जो कि आज भी लोगों के बीच में आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बनी हुई है। इस पूरी क्रिया को तांत्रिकों द्वारा करवाया जाता है।
वहीं ढोल नगाड़ों के साथ शांति पूजा अर्चना भी करते हैं और उनके द्वारा ही संतान प्राप्ति को लेकर की जाने वाली सारी प्रतिक्रियाओं को करवाया जाता है और बाद में इस परंपरा को भी निभाया जाता है। गौरतलब है कि आस्था के नाम पर होने वाली इस परंपरा को लेकर प्रशासन भी कड़ा एक्शन नहीं लेता है। जबकि जिस तरह से इस परंपरा को निभाया जाता है और नदी का गंदा पानी बच्चों को पिलाया जाता है यहां उनके स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा हानिकारक हो सकता है।